"मेरे मन की गंगा" जाने-माने साहित्यकार नारायण सिंह गुर्जर की 25 बहुआयामी कहानियों का संग्रह है। इनमें समय और समाज का बहुत ही सुंदर और तार्किक चित्रण किया गया है। कहानीकार ने समय को बड़ी सुंदरता हृदयग्राही तरीके से पिरोया है और हर कहानी में स्वाभाविक तौर पर अपना दृष्टिकोण झलकाया है। डॉ वी भारती ने उनके लिए बिलकुल सही लिखा है कि "नारायण सिंह गुर्जर संभावनाओं के कहानीकार हैं। ये सामान्य पाठक की समझ के बेहद निकट हैं।"
कहानी "किराये की रसीद" सरकारी कर्मचारियों द्वारा झूठी रसीदें बनाने पर आधारित है। "आज" ऐसे नौजवान पुत्र की कहानी है जो समय की ठोकरों से मान लेता है कि ईमानदार रहने में कोई लाभ नहीं है। "बयान" का नायक विकलांगता से मिलने वाले लाभ अर्जित करने के लिए अपनी दोनों टांगें तुड़वाने को तैयार है। "श्रद्धा" प्रेम को नये मायने देती है तो "ममा" अवैध संबंधों की बात करती है। यह नकारात्मक लगी जो किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचती। भाई-बहन के रिश्ते पर आधारित "भावना" सकारात्मक कहानी है। "अक्सर" ऐसे प्रेम संबंधों की बात करती है जहां जातियों के अंतर के कारण विवाह नहीं हो पाता। यहां कहानीकार को सुलझााव भी बताना चाहिए था। "दिवाली का दुख" मन को छू लेने वाली कहानी है। "हत्या" में फंसने और फिर आत्महत्या करने वाली लड़कियों को सावधान करती है। "पंगु" हिंदी की महत्ता पर है तो "राखी की कीमत" इस पवित्र रिश्ते पर भी धन का असर होने को बताती है। "पहला दीपक" जनसंख्या की समस्या पर है। इसी तरह पूरी थोड़ी कर्री थी, बारात यात्रा, अन्तर, सुबह का भूला, सरवन कुमार, दिया तले, उल्टा चश्मा, ईर्ष्या, झंझा, परिभाषा, निर्विरोध, एकता और सजा कहानियों में समाज की विविध समस्याओं और उनके कारणों को बड़े जीवन्त तरीके से रेखांकित किया गया है।
यह एक ऐसा कहानी संग्रह है जिसे हर पाठक एक ही बैठक में पढ़ना चाहेगा। पुस्तक का आवरण मनभावन और अर्थपूर्ण है। यह केवल कहानीकार के मन की नहीं, बल्कि पाठकों के मन की भी गंगा है। भविष्य में ऐसी सुंदर और सार्थक रचनाओं के लिए नारायण सिंह गुर्जर को हार्दिक शुभकामनाएं।