हाल के वर्षों में यह विषयचर्चा में रहा है कि भाजपा के उभार में निर्णायक
भूमिका निभाने वाले लालकृष्ण आडवाणी पार्टी के स्वर्णिम काल में किस भूमिका
में हैं। यानी मार्गदर्शक मंडल के रूप में उनकी भूमिका क्या है। एक समय था जब
भाजपा का नाम लिया जाता था तो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और
पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के नाम सामने आते थे। ऐसी ही चर्चापिछले
दिनों अयोध्या में राम मंदिर कीप्राण प्रतिष्ठा के दौरान उनकी अनुपस्थिति को
लेकर होती रही। लेकिन केंद्र सरकार ने बीते शनिवार को पहले जनसंघ और बाद में
भाजपा के सूत्रधार रहे लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न सम्मान देकर ऐसे तमाम
सवालों पर विराम लगाने का प्रयास किया। राम मंदिर आंदोलन के अगुवा रहे और
सोमनाथ यात्रा के जरिये मंदिर आंदोलन में उफान लाने वाले आडवाणी को सर्वोच्च
नागरिक सम्मान दिए जाने से पार्टी व आनुषंगिक संगठनों के वे पुराने लोग
उत्साहित हैं, जिन्होंने पार्टी के दो सांसदों से लेकर पूर्ण बहुमत वाली
भाजपा सरकार का दौर देखा है। कुछ दिन पूर्व ही बिहार में सोशल इंजीनियरिंग के
सूत्रधार व बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न
से सम्मानित किया था। अब तक भाजपा अपने एक दशक के कार्यकाल में सात लोगों को
भारत रत्न देने की घोषणा कर चुकी है। अभी तक दिये गए भारत रत्नों में
लालकृष्ण आडवाणी का स्थान पचासवां है। कुछ लोग इस निर्णय को चुनावी परिदृश्य
से जोड़ते हैं तो कुछ लोग प्राण प्रतिष्ठा की सार्थक परिणति से, क्योंकि 1991
की रथयात्रा के सूत्रधार आडवाणी ही थे। वहीं कुछ लोग मानते हैं कि आडवाणी
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के अगुवा रहे भाजपा नेताओं की एक पीढ़ी के मार्गदर्शक
रहे। जिसमें मौजूदा प्रधानमंत्री भी शामिल रहे हैं। राजनीतिक पंडित मानते हैं
कि नरेंद्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाने में भी आडवाणी की भूमिका
रही। यही नहीं, वे गुजरात में आडवाणी की रथ यात्रा के सारथी भी रहे हैं। कहा जा
रहा है कि भारत रत्न आडवाणी को देना गुरुदक्षिणा देने जैसा भी है। कई राजनीतिक
पंडित पिछले दिनों बिहार में सामाजिक न्याय के अगुवा कर्पूरी ठाकुर और
लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न दिए जाने को मंडल व कमंडल को साधने की कवायद
बताते हैं। बहरहाल, पार्टी ने कहीं न कहीं यह संदेश देने की भी कोशिश की है
किवह मार्गदर्शक मंडल में शामिल अपनी बुनियाद का सम्मान भी करती है। कई
विश्लेषक लालकृष्ण आडवाणी के योगदान को भाजपा व जनसंघ से इतर राजनीतिक शुचिता
व जीवन मूल्यों में योगदान के रूप में देखते रहे हैं। एक आक्प में नाम आने पर
लोकसभा से इस षे ्तीफा और स्थिति स्पष्ट न होने तक संसदीय राजनीति से दूर रहने
के वायदे को उन्होंने निभाया भी। आज के राजनीतिक परिदृश्य में उनका मूल्यांकन
इक्कीस ही कहा जाएगा।