गुरबत और आर्थिक संकटों से जूझते पाकिस्तानी अवाम ने जो जनादेश हालिया आम
चुनाव में दिया, वह पाक सेना के मंसूबों पर पानी फेरता नजर आया है। बहुत संभव
है पाक के सत्ताप्रतिष्ठानों द्वारा रची गई व्यूह रचना जेल के भीतर से जनादेश
को प्रभावित करने वाले पूर्वप्रधानमंत्री इमरान ख्ाान के समर्थकों को सत्ता
से दूर रख दे, लेकिन पूरी दुनिया ने पाकिस्तानियों की स्वस्थ लोकतंत्र के
प्रतिप्रतिबद्धता को तो देख ही लिया है। यहां सवाल यह है कि क्या इमरान अब
जल्दीजेल से बाहर आ पाएंगे? कुछ मकदमें वापस ह ु ए हैं। रा ु जनीतिक
अनिश्चितता, सेना द्वारा पैदा अवरोधों, इंटरनेट व सोशल मीडिया पर पाबंदी,
कानूनी दांवपेचों के बावजूद इमरानखान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ समर्थित निर्दलीय
उम्मीदवारों का सबसे आगे रहना, पाकिस्तानी सेना के लिये करारा सबक तो है।
बहुत संभव है कि सेना द्वारा पर्दे के पीछे रचे प्रपंच से सत्ता पर काबिज
होने की कोशिश में पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज यानी पीएमएल और पाकिस्तान
पीपुल्स पार्टी सफल हो जाएं, लेकिन पाकिस्तान के लोकतंत्र के इतिहास में यह
बात दर्ज हो गई है कि पाक की जनता जेल के सीखचों में कैद लोकतंत्र के जायज
प्रतिनिधि को जिताने का दमखम रखती है। अब पाकिस्तान में सत्ता के तमाम समीकरण
तलाशे जा रहे हैं। कोशिश हो रही है कि छोटे दलों के सहयोग से 265 सीटों वाली
नेशनल असेंबली में किसी तरह बहुमत का आंकड़ा 133 हासिल कर लिया जाए। बहुत
संभव है सेनाश्रय में नवाज शरीफ फिर सत्ता की बागडोर हासिल कर लें और पीपीपी
किंग मेकर की भूमिका निभाती नजर आए। कहना कठिन है कि पीटीआई के समर्थन से जीते
निर्दलीय उम्मीदवारों में से कितने अपने स्टैंड पर कायम रहते हैं और कब तक। यह
उनकी वफादारी दिखाने का भी समय है। वहीं सौदेबाजी करके पक्ष बदलने की आशंकाओं
को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यही वजह है कि नवाज शरीफ लोकतंत्र की
दुहाई देकर सभी दलों को साथ आने की बात कर रहे हैं। साथ ही निर्दलीयों की
सफलता का भी सम्मान करने की बात कर रहे हैं। निस्संदेह,पाकिस्तान में लंबे
समय तक सेना के दखल और राजनीतिक मूल्यों में निरंतर आई गिरावट ने पाकिस्तानी
लोकतंत्र को रुग्ण अवस्था में पहुंचा दिया है। कट्टरपंथियों और भ्रष्ट
राजनेताओं ने भी इसमें बड़ी भूमिका निभायी है। ऐसे में जीते निर्दलीय
उम्मीदवारों की खरीद-फरोख्त की आशंकाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।
कानून व्यवस्था में व्याप्त तमाम छिद्र इसमें उनकी मदद कर सकते हैं। लेकिन एक
बात तो तय है कि पाला बदलने वाले नेता जनता में अपनी साखखो सकते हैं। वैसे भी
पश्चिमी जगत में पाक लोकतंत्र को संदिग्ध चुनाव प्रक्रिया के जरिये चोट
पहुंचाने पर तीखी आलोचना की जा रही हैं। चुनाव के दौरान इंटरनेट और सोशल
मीडिया पर लगी पाबंदी को इन्हीं धांधलियों को सिरे चढ़ाने के प्रयासों के रूप
में देखा गया।