जिस कतर में शरिया कानून लागू हो और उससे हमारे रिश्ते बहुत मधुर न रहे हों,
वहां से मौत की सज़ा पाए आठ पूर्व भारतीय नौसैनिक अधिकारियों की रिहाई भारतीय
कूटनीति की बड़ी सफलता ही कही जाएगी। ओमान की एक कंपनी के माध्यम से कतर के
एक सुरक्षा प्रोजेक्ट में काम करने वाले इन अधिकारियों को पिछले साल अक्तूबर
में निचली अदालत द्वारा मौत की सज़ा सुनाई गई थी। भारत सरकार के कूटनीतिक
प्रयासों से पहले फांसी की सज़ा को टाला गया और उसके बाद सिर्फ डेढ़ माह में
वे सकुशल घर लौट आए। निस्संदेह, यह घटनाक्रम प्रधानमंत्री और विदश मंत् े
रालय के लिए एक कठिन परीक्षा की घड़ी थी। जिसने भारतीय राजनय को मुश्किल में
डाल दिया था।
बहरहाल, दाहरा ग्लोबल कंपनी के लिये काम करने वाले भारतीय
नागरिकों की रिहाई सुखद है, जिनको लेकर विपक्ष भी सरकार पर दबाव बना रहा था।
इन भारतीयों की रिहाई के बाद विदेश मंत्रालय ने घोषणा की है कि प्रधानमंत्री
अपनी दो दिवसीय संयुक्त अरब अमीरात यात्रा के बाद अब कतर भी जाएंगे।
निस्संदेह, इस घटनाक्रम से दोनों देशों के बीच बढ़े कूटनीतिक तनाव का पटाक्षेप
भी होगा।
दरअसल, प्रधानमंत्री यूएई में मध्यपूर्व के किसी इस्लामिक देश में
बनने वाले पहलेहिंदू मंदिर के उद्घाटन के अलावा एक आर्थिक शिखर सम्मेलन में
भी भाग लेंगे। उल्लेखनीय है कि इन पूर्व नौसैनिक अधिकारियों को अगस्त, 2022
में गिरफ्तार किया गया था लेकिन कतर व भारत की तरफ से कभी गिरफ्तारी के
कारणों का जिक्र नहीं किया गया। कालांतर में भारत के कूटनीतिक प्रयासों से
बीते साल अपील दायर करने के बाद मौत की सज़ा को कैद में बदल दिया गया। वैसे
कतर की जेलों में अभी भी काफी भारतीय बंदी हैं। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में
छपी रिपोर्टों की मानें तो कतर की कार्रवाई की वजह एक सबमरीन प्रोजेक्ट की
संवेदनशील जानकारी लीक होना बताया गया है।
दरअसल, ये सभी कर्मचारी ओमान की
कंपनी दाहरा ग्लोबल टेक्नोलॉजीज एंड कंसल्टिंग सर्विसेज में काम करते थे। यह
कंपनी कतर नौसेना के लिये एक उन्नत इतालवी तकनीक युक्त तथा रडार से बचने वाली
सबमरीन हासिल करने के लिये काम कर रही थी। बताया जाता है किपिछले वर्ष जब कतर
ने कंपनी को बंद किया तो सत्तर फीसदी कर्मियों को देश छोड़ने को कहा, जिनमें
अधिकांश भारतीय नौसेना के पूर्वकर्मी थे। हालांकि, यह भारत के
लियेडिप्लोमैटिक चैलेंज नहीं था क्योंकि जो लोग ओमान की कंपनी में काम कर रहे
थे, वे सरकारी काम के लिये नहीं गए थे। वे नेवी से सेवानिवृत्ति के बाद निजी
कंपनी के लिये काम कर रहे थे। इसके बावजूद भारत सरकार ने इस मामले में गंभीर
रुचि ली और गिरफ्तार लोगों को कांसुलर और कानूनी सहायता प्राथमिकता के आधार
पर उपलब्ध करायी। साथ ही गिरफ्तार लोगों के परिवारों से भी बराबर संपर्क कायम
किया।