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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला : केंद्र व राज्य सरकारें नहीं कर सकेंगी जंगलों की कटाई

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों को वन क्षेत्रों की कटाई को लेकर कोई भी कदम उठाने को लेकर अगले आदेश तक रोक लगा दी है।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों को वन क्षेत्रों की कटाई को लेकर कोई भी कदम उठाने को लेकर अगले आदेश तक रोक लगा दी है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विनोद चंद्रन की पीठ ने 2023 वन संरक्षण कानून में संशोधन के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई की। केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि वह इस मामले में दायर आवेदनों पर तीन सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करेंगी। पीठ ने सुनवाई चार मार्च के लिए टाल दी।

पिछले साल फरवरी में शीर्ष अदालत ने 2023 के संशोधित कानून के तहत जंगल की परिभाषा में लगभग 1.99 लाख वर्ग किलोमीटर वन भूमि को जंगल के दायरे से बाहर रखा था। पीठ ने बताया कि चिड़ियाघर खोलने या वन भूमि पर सफारी शुरू करने के किसी भी प्रस्ताव के लिए सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी आवश्यक है। शीर्ष अदालत ने कहा कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा प्रदान किए जाने वाले वन क्षेत्र पर सभी विवरण अपनी वेबसाइट पर डालेंगे।

याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में जंगल की परिभाषा का दायरा संशोधित कानून की धारा 1ए में सीमित किया जा रहा है। अदालत ने आगे कहा, “हम एक अंतरिम आदेश जारी करते हैं कि संरक्षित क्षेत्रों के अलावा अन्य वन क्षेत्रों में सरकार या किसी प्राधिकरण द्वारा अधिनियमित विले लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 में संदर्भित चिड़ियाघरों और सफारी की स्थापना के किसी भी प्रस्ताव को अंतिम रूप से मंजूरी नहीं दी जाएगी।अपने अंतरिम आदेश में पीठ ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से टीएन टीएन गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ के मामले में 1996 के फैसले में शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित वन की परिभाषा के अनुसार काम करने को कहा।  केंद्र ने बताया कि शीर्ष अदालत में दिए गए निर्देशों के बाद संशोधन पारित किया गया था। बता दें कि 27 मार्च 2023 को केंद्र ने वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक पेश किया, जबकि याचिकाओं में संशोधित कानून की संवैधानिकता को चुनौती दी गई थी और इसे अमान्य घोषित करने की मांग भी की गई थी।