उत्तर प्रदेश के संभल जिले में समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद के पिता द्वारा की गई विवादित टिप्पणी पर हंगामा मच गया है। मामला तब गरमाया जब उन्होंने बिजली विभाग के अधिकारियों को धमकी देते हुए कहा, "सरकार बदलने दो, सबका हिसाब होगा।" इस बयान के बाद प्रशासन ने त्वरित कार्रवाई करते हुए उनके खिलाफ FIR दर्ज कर ली।
मामला क्या है?
यह घटना संभल जिले की है, जहां बिजली विभाग की टीम बिजली चोरी के खिलाफ अभियान चला रही थी। आरोप है कि टीम ने एक इलाके में बिजली की अवैध आपूर्ति काट दी। इस पर सपा सांसद के पिता ने अधिकारियों को धमकाते हुए कहा कि जब सत्ता परिवर्तन होगा, तब उनसे 'हिसाब' लिया जाएगा।
बयान का वीडियो वायरल होने के बाद, यह मामला सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया। वीडियो में देखा जा सकता है कि सांसद के पिता अधिकारियों को खुलेआम चेतावनी दे रहे हैं।
FIR क्यों दर्ज हुई?
बिजली विभाग के अधिकारियों ने इस घटना की शिकायत स्थानीय पुलिस थाने में दर्ज कराई। अधिकारियों का कहना है कि इस तरह की धमकियां न केवल प्रशासन के काम में बाधा डालती हैं, बल्कि सरकारी कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए भी खतरा बनती हैं। FIR में आरोप लगाया गया है कि सपा नेता के पिता ने सरकारी कार्य में बाधा डालने और धमकी देने का प्रयास किया।
राजनीतिक विवाद
इस घटना ने राजनीतिक विवाद को जन्म दे दिया है। भाजपा नेताओं ने इस बयान की निंदा की और इसे "अराजकता फैलाने वाला" करार दिया। वहीं, समाजवादी पार्टी ने इसे सत्तारूढ़ भाजपा द्वारा की गई "राजनीतिक बदले की कार्रवाई" बताया।
बयान पर प्रतिक्रियाएं
सपा नेता के पिता के बयान पर कई प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं।
- भाजपा प्रवक्ता: "सरकारी अधिकारियों को धमकाना कानून का उल्लंघन है। इससे स्पष्ट होता है कि सपा नेताओं का असली चेहरा क्या है।"
- सपा प्रवक्ता: "यह मामला प्रशासनिक पक्षपात का है। भाजपा सरकार विपक्ष की आवाज को दबाने का हरसंभव प्रयास कर रही है।"
कानून क्या कहता है?
कानून के अनुसार, सरकारी अधिकारियों को उनके कर्तव्यों के निर्वहन में बाधा डालना और धमकी देना दंडनीय अपराध है। अगर आरोपी दोषी पाया जाता है, तो उसे जेल की सजा भी हो सकती है।
आम जनता का क्या कहना है?
घटना के बाद स्थानीय लोग भी दो गुटों में बंटे नजर आए। जहां कुछ लोग सपा नेता के पिता का समर्थन कर रहे हैं, वहीं कुछ ने इसे "सत्ता का दुरुपयोग" बताया।
निष्कर्ष
यह घटना केवल एक बयान तक सीमित नहीं है, बल्कि प्रशासन और राजनीति के बीच टकराव को उजागर करती है। मामले की जांच जारी है और देखने वाली बात होगी कि कानून अपना काम कितनी निष्पक्षता से करता है।