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Parliament में भाषा विवाद: धर्मेंद्र प्रधान की टिप्पणी पर DMK सांसद कनिमोझी ने विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया

संसद में भाषा विवाद को लेकर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और DMK सांसदों के बीच तीखी बहस हुई, जिसमें प्रधान की टिप्पणी पर आपत्ति जताते हुए सांसद कनिमोझी ने उनके खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस दायर किया है।

संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण के पहले ही दिन, 10 मार्च 2025 को, लोकसभा में भाषा विवाद को लेकर तीखी बहस हुई। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) सांसदों के बीच हुई इस बहस ने सदन की कार्यवाही में व्यवधान उत्पन्न किया। प्रधान की एक टिप्पणी पर आपत्ति जताते हुए DMK सांसद कनिमोझी करुणानिधि ने उनके खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस दायर किया है।

 

  यह विवाद राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत प्रस्तावित तीन-भाषा फॉर्मूले को लेकर है। तमिलनाडु सरकार इस फॉर्मूले का विरोध करती रही है, इसे राज्य की भाषाई और सांस्कृतिक पहचान के खिलाफ मानते हुए। DMK का आरोप है कि केंद्र सरकार इस नीति के माध्यम से हिंदी थोपने का प्रयास कर रही है, जो तमिलनाडु की जनता के लिए अस्वीकार्य है।

 

संसद में क्या हुआ? 10 मार्च को लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान, DMK सांसद टी सुमति ने आरोप लगाया कि NEP का विरोध करने के कारण तमिलनाडु को लगभग 2,000 करोड़ रुपये की शिक्षा निधि से वंचित किया गया है। इसके जवाब में, शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने DMK सरकार पर "छात्रों के भविष्य के साथ राजनीति" करने और "भाषाई भेदभाव" को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु सरकार ने पहले पीएम-श्री स्कूल योजना के लिए सहमति दी थी, लेकिन बाद में अपना रुख बदल लिया। प्रधान ने यह भी उल्लेख किया कि कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश जैसे गैर-बीजेपी शासित राज्यों ने NEP को स्वीकार किया है, जबकि तमिलनाडु राजनीतिक कारणों से इसका विरोध कर रहा है।

 

  प्रधान ने DMK सरकार पर "अलोकतांत्रिक और असभ्य" होने का आरोप लगाया, जिससे DMK सांसदों ने कड़ा विरोध जताया। सांसद कनिमोझी ने प्रधान की "असभ्य" टिप्पणी पर आपत्ति जताते हुए कहा कि तमिलनाडु सरकार ने अपनी आपत्तियों से शिक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री दोनों को अवगत कराया है। विपक्षी सांसदों के विरोध के बाद, प्रधान ने अपनी टिप्पणी वापस ले ली और स्पीकर ने उस हिस्से को सदन की कार्यवाही से हटा दिया।

 

विशेषाधिकार हनन का नोटिस: इस घटना के बाद, कनिमोझी ने प्रधान के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस दायर किया, जिसमें उन्होंने प्रधान की टिप्पणी को "दुर्भावनापूर्ण, भ्रामक और अपमानजनक" बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधान ने सदन को गुमराह किया और विशेषाधिकार का उल्लंघन किया।

 

भाजपा की चिंता: इस विवाद ने भाजपा के भीतर भी चिंता पैदा की है। कुछ नेताओं को लगता है कि DMK इस मुद्दे को "हिंदी थोपने" के रूप में प्रस्तुत कर तमिल भावनाओं को भुना सकती है, जो आगामी चुनावों में भाजपा के लिए नुकसानदायक हो सकता है। भाजपा को तमिलनाडु में अब भी एक "बाहरी" पार्टी के रूप में देखा जाता है, और यह विवाद उस धारणा को और मजबूत कर सकता है।

 

संसद में भाषा विवाद को लेकर उत्पन्न यह स्थिति न केवल केंद्र और राज्य सरकारों के बीच तनाव को दर्शाती है, बल्कि यह भी संकेत देती है कि भाषाई और सांस्कृतिक मुद्दे भारतीय राजनीति में कितने संवेदनशील हैं। आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर और बहस होने की संभावना है, जो राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीति दोनों पर प्रभाव डाल सकती है।