मणिपुर में राजनीतिक अस्थिरता के बीच, मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के 9 फरवरी 2025 को इस्तीफा देने के बाद, केंद्र सरकार ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का निर्णय लिया है। इस फैसले के साथ ही राज्य की प्रशासनिक बागडोर अब केंद्र सरकार के हाथों में आ गई है।
राज्य में मई 2023 से मैतेई और कुकी-जो समुदायों के बीच जारी जातीय संघर्ष के कारण स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई थी, जिसमें अब तक 200 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। इन परिस्थितियों में, मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने 9 फरवरी को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उनके इस्तीफे के बाद, भाजपा विधायक दल नए मुख्यमंत्री के चयन में असफल रहा, जिसके परिणामस्वरूप राज्य में नेतृत्व संकट उत्पन्न हो गया।
केंद्र सरकार ने राज्यपाल की रिपोर्ट और अन्य उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि मणिपुर की सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार कार्य करने में असमर्थ है। इसलिए, संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू करने का निर्णय लिया गया। इस अधिसूचना के अनुसार, मणिपुर सरकार के सभी कार्य और राज्यपाल की शक्तियाँ राष्ट्रपति को हस्तांतरित हो गई हैं, और राज्य की विधानसभा की शक्तियाँ संसद द्वारा या उसके प्राधिकरण के तहत प्रयोग की जाएंगी।
राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद, राज्य की पूरी प्रशासनिक जिम्मेदारी राज्यपाल के पास चली जाती है, जो राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं। इस अवधि में, राज्यपाल राज्य के मुख्य सचिव और अन्य प्रशासकों के साथ मिलकर प्रशासनिक कार्यों का संचालन करते हैं। राज्य की विधानसभा को निलंबित या भंग किया जा सकता है, और आवश्यकतानुसार राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकते हैं।
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद, राज्य की जनता और राजनीतिक विश्लेषकों की नजरें अब इस बात पर टिकी हैं कि केंद्र सरकार राज्य में शांति और स्थिरता बहाल करने के लिए क्या कदम उठाएगी। आगामी दिनों में, राज्य में नए चुनावों की घोषणा या अन्य प्रशासनिक सुधारों की उम्मीद की जा रही है, जिससे मणिपुर में सामान्य स्थिति बहाल हो सके।