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Supreme Court की सख्त टिप्पणी: Freebies से काम करने की इच्छा हो रही कम, मुफ्त योजनाओं पर जताई चिंता

सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त योजनाओं (Freebies) पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इनसे लोगों में काम करने की इच्छा कम हो रही है, जिससे समाज की उत्पादकता प्रभावित हो रही है।

नई दिल्ली: 13 फरवरी, 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने चुनावों से पहले राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहारों (Freebies) की घोषणा पर गंभीर चिंता व्यक्त की। न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि इन मुफ्त योजनाओं के कारण लोग काम करने के इच्छुक नहीं हैं, जिससे समाज की उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

सुप्रीम कोर्ट शहरी क्षेत्रों में बेघर लोगों के आश्रय के अधिकार से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इस दौरान न्यायमूर्ति गवई ने टिप्पणी की, "दुर्भाग्यवश, इन मुफ्त योजनाओं के कारण लोग काम करने के इच्छुक नहीं हैं। उन्हें बिना काम किए मुफ्त राशन और धनराशि मिल रही है।" पीठ ने यह भी कहा कि सरकार को लोगों को मुख्यधारा में शामिल करने और उन्हें राष्ट्र के विकास में योगदान देने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

केंद्र सरकार के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने अदालत को बताया कि सरकार शहरी गरीबी उन्मूलन मिशन को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है, जिसमें शहरी बेघर लोगों के लिए आश्रय प्रदान करने सहित विभिन्न मुद्दों का समाधान शामिल होगा। अदालत ने अटॉर्नी जनरल से यह वेरिफाई करने को कहा कि सरकार इस मिशन को कब तक लागू करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई छह हफ्ते बाद निर्धारित की है।

यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त उपहारों की प्रथा पर चिंता व्यक्त की है। पिछले साल अक्टूबर में भी अदालत ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। याचिकाकर्ता ने अदालत से आग्रह किया था कि राजनीतिक पार्टियां चुनाव से पहले मुफ्त उपहारों के वादे न करें।

सुप्रीम कोर्ट की इस सख्त टिप्पणी के बाद, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार और राजनीतिक दल इस पर क्या कदम उठाते हैं। मुफ्त योजनाओं का उद्देश्य जरूरतमंदों की सहायता करना है, लेकिन यदि वे लोगों की काम करने की इच्छा को कम कर रही हैं, तो यह देश की अर्थव्यवस्था और समाज के लिए चिंता का विषय है।