आजादी के बाद भी देश के कार्यशील श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी निराशाजनक
ही रही है। यूं तो परिवार में महिलाओं के योगदान का मूल्यांकन किसी पैमाने से
संभव नहीं है,लेकिन अब महिलाएं घर-गृहस्थी को संबल देने के अलावा तमाम अन्य
क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। दरअसल, जब भी महिलाओं की तरक्की
की बात होती है, तो जो समाज के उदाहरण दिये जाते हैं, वे महज प्रतीकात्मक
होते हैं। वे उच्च वर्ग या मध्यम वर्ग के प्रतिनिधि चेहरे होते हैं। जमीनी
हकीकत बेहदविषमताओं से भरी है। जहां आम स्त्रियों के लिये लैंगिक भेदभाव के
चलते अनुकूल कार्य परिस्थितियां उपलब्ध नहीं हैं। उनको न्यायसंगत मेहनताना भी
नहीं मिलता है। इसके बावजूद व्यक्तिगत व स्वयं सहायता समूहों की तरफ से
उत्साहवर्धक शुरुआत हुई है। सरकारी आंकड़ों पर विश्वास करें तो महिला श्रम बल
की भागीदारी में वृद्धि हुई है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय
द्वारा जारी आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण रिपोर्ट 2022-23 के अनुसार वर्ष 2021-22
में राष्ट्रीय श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी 32.8 फीसदी थी, जो वर्ष
2022-23 में बढ़कर 37 फीसदी हो गई है। निश्चिय रूप से 4.2 फीसदी की वृद्धि
उत्साहजनक है। हाल ही में अंतरिम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला
सीतारमण ने उत्साहवर्धक जानकारी दी कि देश में एक करोड़ कर्मशील महिलाएं
लखपति बन चुकी हैं, अब तीन करोड़ लखपति दीदी बनाने का लक्ष्य रखा गया है।
दरअसल, लखपति दीदी योजना का मकसद साधनविहीन महिलाओं की आर्थिक स्थिति सुधारने
के लिये, उन्हें स्किल डेवलपमेंट प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल करके आय
अर्जन के योग्य बनाना है। उन्हें अपना बिजनेस शुरू करने के लिये प्रेरित किया
जाता है। स्वयं सहायता समूहों के साथ जुड़कर इस योजना का लाभ उठाया जा सकता है।
महिलाएं अपने निकटवर्ती आंगनवाड़ी केंद्र में से इस बाबतसूचना प्राप्त कर सकती
हैं। इस योजना के अंतर्गत महिलाओं को कौशल प्रशिक्षण दिया जाता है। उन्हें
ड्रोन संचालन, कृषि उत्पादों के बाजारीकरण तथा एलईडी बल्ब बनाने आदि का
प्रशिक्षण देकर अपना काम शुरू करके आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास होता है। हाल
के अंतरिम बजट में वित्त मंत्री ने तीन करोड़ लखपति दीदी बनाने के लक्ष्य की
बात कही। निश्चित रूप से महिलाएं जिस तरह ईमानदारी, प्रतिबद्धता तथा जीवटता के
साथ काम करती हैं उससे लगता है किदेश की महिलाओं की भागीदारी से अर्थव्यस्था
को नई गति मिल सकेगी। निस्संदेह जीवन में सुगमता व उद्यमशीलता से आत्मनिर्भर
हुई महिलाओं का आत्मसम्मान भी बढ़ेगा। वित्त मंत्री ने यह भी बताया था कि
मुद्रा योजना के तहत महिलाओं को तीस करोड़ रुपये के ऋण प्रदान किये गये। इन
आंकड़ों को कार्यक्षेत्र में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी के रूप में भी देखा
जाना चाहिए।