राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने हाल ही में एक बेहद महत्वपूर्ण बयान दिया है, जिसमें उन्होंने मौजूदा शिक्षा प्रणाली पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना था कि हमारी शिक्षा प्रणाली वर्तमान समय और समाज की बदलती आवश्यकताओं से मेल नहीं खा रही है। समाज के विकास और युवा पीढ़ी के सही दिशा में प्रगति के लिए शिक्षा में मौलिक बदलाव की आवश्यकता है।
मोहन भागवत ने स्पष्ट रूप से कहा कि हम जिस प्रकार की शिक्षा दे रहे हैं, वह बच्चों को केवल जानकारी देती है, लेकिन उन्हें जीवन की चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार नहीं करती। शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ किताबी ज्ञान देना नहीं होना चाहिए, बल्कि यह विद्यार्थियों को जीवन की वास्तविक समस्याओं के लिए मानसिक रूप से तैयार करना चाहिए।
शिक्षा और जीवन के बीच का अंतर
मोहन भागवत ने इस बारे में बात करते हुए कहा, "शिक्षा को एक ऐसा उपकरण बनाना चाहिए जो छात्रों को जीवन की कठिनाइयों और चुनौतियों से निपटने के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार कर सके। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में यह कमी है, और हमें इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।"
उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षा केवल सैद्धांतिक ज्ञान तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि व्यावहारिक और जीवनोपयोगी ज्ञान भी प्रदान करना चाहिए। एक विद्यार्थी को समाज में योगदान देने के लिए केवल किताबों का ज्ञान नहीं, बल्कि उसे सही सोच, नैतिकता और सामर्थ्य भी सिखाई जानी चाहिए, ताकि वह समाज में अपनी भूमिका अच्छे से निभा सके।
शिक्षा प्रणाली में बदलाव की आवश्यकता
मोहन भागवत ने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा में बदलाव अब समय की आवश्यकता बन चुका है। उन्होंने कहा, "समय बदल रहा है और हमें अपने बच्चों को बदलते समय के अनुरूप शिक्षा देनी होगी। आज की शिक्षा प्रणाली तकनीकी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तो सक्षम है, लेकिन यह बच्चों को उन महत्वपूर्ण जीवन कौशलों से वंचित रखती है, जो उन्हें एक सशक्त नागरिक बनने के लिए चाहिए।"
उनका यह भी कहना था कि शिक्षा में संस्कृति और भारतीय सभ्यता के महत्व को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए, क्योंकि इससे बच्चों में सही मूल्यों का विकास होता है और वे अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं। शिक्षा के इस तरह के समग्र दृष्टिकोण से बच्चों को आत्मनिर्भर और जिम्मेदार नागरिक बनने में मदद मिल सकती है।
समाज में शिक्षा के योगदान की भूमिका
भागवत ने इस बात को भी रेखांकित किया कि शिक्षा का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत विकास नहीं होना चाहिए, बल्कि समाज के समग्र विकास के लिए भी इसे सहायक बनाना चाहिए। उन्होंने कहा, "हमारे समाज में आज भी कई समस्याएं हैं, और हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शिक्षा का उद्देश्य इन समस्याओं को हल करने के लिए एक सक्षम पीढ़ी तैयार करना हो।"
उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में केवल संस्थागत बदलाव ही नहीं, बल्कि समाज और परिवार के स्तर पर भी जागरूकता और बदलाव की आवश्यकता है। यह बदलाव सिर्फ किताबों और पाठ्यक्रम में ही नहीं, बल्कि हमारे दृष्टिकोण और सोच में भी होना चाहिए।
कैसे बदल सकती है शिक्षा प्रणाली?
मोहन भागवत के बयान के बाद अब यह सवाल उठता है कि शिक्षा प्रणाली को कैसे बदला जा सकता है। सबसे पहले, शिक्षा को अधिक प्रायोगिक बनाना होगा। विद्यार्थियों को जीवन कौशल, नैतिकता, और नेतृत्व गुण सिखाने के लिए पाठ्यक्रम में बदलाव करने होंगे। इसके अलावा, तकनीकी शिक्षा और व्यावसायिक कौशल को भी प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ताकि विद्यार्थियों को रोजगार के लिए बेहतर अवसर मिल सकें।
दूसरी ओर, संस्कृतिक शिक्षा को भी पाठ्यक्रम में महत्वपूर्ण स्थान मिलना चाहिए। भारतीय संस्कृति, सभ्यता, और मूल्यों के महत्व को समझाते हुए इसे विद्यार्थियों में प्रोत्साहित किया जा सकता है।
आखिरकार क्या संदेश दिया मोहन भागवत ने?
मोहन भागवत ने यह संदेश दिया कि शिक्षा केवल किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं होनी चाहिए। यह जीवन को समझने, उसके विभिन्न पहलुओं को जानने और समाज के प्रति जिम्मेदारी निभाने के बारे में भी होनी चाहिए। समय बदल चुका है, और अब शिक्षा प्रणाली को भी बदलते समय के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना होगा।
उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षा का उद्देश्य बच्चों में सिर्फ बौद्धिक विकास नहीं, बल्कि उन्हें एक अच्छा इंसान और जिम्मेदार नागरिक बनाना भी होना चाहिए। इस बदलाव की दिशा में सभी को मिलकर काम करने की आवश्यकता है, ताकि हमारे समाज में एक सशक्त और जागरूक पीढ़ी तैयार हो सके।