विशेष साक्षात्कार

104 फीसदी ट्रंप टैरिफ के जवाब में चीन ने अमेरिकी सामानों पर आयात शुल्क बढ़ाकर किया 84 प्रतिशत

चीन और ट्रंप के बीच चल रही तनातनी बुधवार को तब और बढ़ गई जब बीजिंग ने अमेरिका से आने वाले सामानों पर टैरिफ बढ़ाकर 84% कर दिया है।

नई दिल्लीचीन और ट्रंप के बीच चल रही तनातनी बुधवार को तब और बढ़ गई जब बीजिंग ने अमेरिका से आने वाले सामानों पर टैरिफ बढ़ाकर 84% कर दिया है। इससे पहले, चीन ने अमेरिकी टैरिफ के जवाब में उसके उत्पादों पर 34% टैरिफ लगाने का एलान किया था। उसके बाद, ट्रंप ने चीन पर 104% आयात शुल्क लगाने का फरमान जारी कर दिया। अब इसी के जवाब में बीजिंग ने कार्रवाई की है।

चीनी की ओर से ताजा टैरिफ के एलान के बाद बुधवार को अमेरिकी शेयर सूचकांक के वायदा भाव में गिरावट दिखी। अमेरिकी समयानुसार सुबह सात बजकर 08 मिनट पर डॉव ई-मिनिस 709 अंक या 1.87% नीचे आ गया। , एसएंडपी 500 -मिनिस में 86.5 अंक या 1.72% की गिरावट दिखी। वहीं, नैस्डैक 100 -मिनिस 250.75 अंक या 1.45% नीचे आ गया।

चीन ने बुधवार को विश्व व्यापार संगठन से कहा कि बीजिंग पर पारस्परिक शुल्क लगाने केअमेरिका के फ़ैसले से वैश्विक व्यापार में और अस्थिरता आने का खतरा है। चीन ने विश्व व्यापार संगठन को दिए गए एक बयान में कहा, “स्थिति ख़तरनाक रूप से बढ़ गई है। ... प्रभावित सदस्यों में से एक के रूप में, चीन इस लापरवाह कदम पर गंभीर चिंता और दृढ़ विरोध व्यक्त करता है।

वस्तुओं के व्यापार से जुड़ी एक बैठक के दौरान विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों को दिए गए एक बयान ड्रैगन ने कहा, “चीन व्यापार युद्धों का विरोध करता है, वह अपने वैध हितों की दृढ़ता से रक्षा करेगा।चीन ने बुधवार को अमेरिका पर डब्ल्यूटीओ के नियमों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया और कहा कि यह बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को कमजोर कर रहा है। चीन ने डब्ल्यूटीओ के सचिवालय को वैश्विक व्यापार पर जवाबी टैरिफ के प्रभाव का अध्ययन करने और सदस्यों को अपने निष्कर्षों की रिपोर्ट देने के लिए कहा।

डब्ल्यूटीओ को दिए गए चीन के बयान में कहा गया, “पारस्परिक शुल्क व्यापार असंतुलन का समाधान नहीं है- और कभी नहीं होगा। इसके बजाय, वे उल्टा असर डालेंगे, जिससे अमेरिका को ही नुकसान होगा।

ट्रम्प के व्यापक शुल्कों ने दशकों से चली आ रही वैश्विक व्यापार व्यवस्था को हिलाकर रख दिया है, मंदी की आशंकाओं को बढ़ा दिया है। अमेरिकी प्रशासन के इस फैसले से प्रमुख कंपनियों के बाजार मूल्य से खरबों डॉलर का नुकसान हुआ है।