कहानी

36 साल बाद भारत में फिर से बिकने लगी सलमान रुश्दी की 'द सैटेनिक वर्सेज', जानें क्या है इसकी कीमत और विवाद

36 साल बाद, सलमान रुश्दी की विवादित किताब 'द सैटेनिक वर्सेज' अब भारत में फिर से बिकने लगी है। यह किताब अपने प्रकाशन के समय से ही विवादों में रही है और इस पर 1989 में भारत में प्रतिबंध लगा दिया गया था। अब इस किताब की कीमत ₹1999 है, और इसके पुनः उपलब्ध होने पर विभिन्न प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। जानिए क्या है इसकी कहानी और इस किताब का महत्व।

सलमान रुश्दी की ‘द सैटेनिक वर्सेज’ (The Satanic Verses), जिसे 1988 में प्रकाशित होने के बाद विश्वभर में भारी विवाद का सामना करना पड़ा था, अब 36 साल बाद भारत में फिर से बिकने लगी है। यह किताब उस समय के बाद से ही धार्मिक असंवेदनशीलता के आरोपों में घिरी रही और भारत सहित कई देशों में प्रतिबंधित कर दी गई थी। अब, इसे भारतीय बाजार में ₹1999 की कीमत पर उपलब्ध कराया गया है, जिससे यह फिर से चर्चा में आ गई है।

'द सैटेनिक वर्सेज' और उसकी कहानी:

सलमान रुश्दी का यह उपन्यास न केवल एक साहित्यिक कृति है, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर गहरे सवाल उठाने वाला भी है। इस किताब की कहानी मुख्य रूप से दो मुस्लिम प्रवासियों, ग़ालिब और सलमान, के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है। किताब में एक काल्पनिक दृष्टिकोण से इस्लाम और उसकी धार्मिक मान्यताओं की आलोचना की गई थी, जिसके चलते इस पर खासकर मुस्लिम समुदाय के बीच तीव्र विरोध उत्पन्न हुआ। विशेष रूप से इस किताब के कुछ हिस्सों में पैगंबर मुहम्मद (PBUH) का वर्णन विवादास्पद था, और इसे ईशनिंदा माना गया था।

भारत में प्रतिबंध और कारण:

1989 में, भारत सरकार ने किताब पर प्रतिबंध लगा दिया था, और यह निर्णय न केवल साहित्यिक दुनिया में बल्कि राजनीतिक और धार्मिक हलकों में भी बड़ी बहस का कारण बना। भारतीय सरकार का कहना था कि किताब में धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाई गई है, विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय की आस्थाओं का अपमान किया गया है। इसके बाद कई मुस्लिम देशों में भी इसे प्रतिबंधित किया गया, और सलमान रुश्दी को खुद भी हत्या की धमकियों का सामना करना पड़ा था।

अब क्यों बिक रही है 'द सैटेनिक वर्सेज' भारत में?

36 साल बाद ‘द सैटेनिक वर्सेज’ का पुनः भारत में बिकना कई कारणों से महत्वपूर्ण है। सबसे पहले, यह क़दम भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बढ़ती स्वीकृति और साहित्यिक विमर्श में खुलापन का प्रतीक है। हालांकि, किताब को लेकर अभी भी कुछ वर्गों में आपत्ति है, लेकिन अब यह मामला पहले से कहीं अधिक जटिल हो गया है। सोशल मीडिया, डिजिटल मीडिया और वैश्विक विमर्श ने इस किताब को फिर से चर्चा में ला दिया है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि अब जब भारत में ‘द सैटेनिक वर्सेज’ को फिर से प्रकाशित किया गया है, तो यह संकेत देता है कि सरकार अब किताबों के प्रति अपनी नीति में थोड़ा नरम रुख अपना रही है। यह कदम किताबों के पुनः विमोचन और साहित्यिक स्वतंत्रता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

क्या इस किताब पर फिर से विवाद हो सकता है?

चूंकि यह किताब अभी भी धार्मिक कट्टरता और आलोचना का विषय बनी हुई है, कुछ वर्गों द्वारा इसके पुनः प्रकाशित होने पर तीव्र प्रतिक्रिया हो सकती है। कई संगठन और धार्मिक समूह इसे फिर से बैन करने की मांग कर सकते हैं। इसके अलावा, इस किताब की बिक्री पर भी विरोधी बयान सामने आ सकते हैं, खासकर वे लोग जो इसे धार्मिक और सांस्कृतिक संवेदनशीलता के खिलाफ मानते हैं।

हालांकि, इसके विपरीत, एक बड़ा तबका इसे साहित्यिक कृति और धार्मिक विचारधारा पर चर्चा के तौर पर देखता है। सलमान रुश्दी के समर्थकों का कहना है कि किताब में जो कुछ भी लिखा गया है, वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है और इसे समझने का तरीका भी वैसा ही होना चाहिए।

'द सैटेनिक वर्सेज' की कीमत और बाजार में उपलब्धता:

भारत में अब इस किताब की कीमत ₹1999 निर्धारित की गई है, जो इसे एक प्रीमियम साहित्यिक कृति के तौर पर प्रस्तुत करती है। इसे अब विभिन्न ऑनलाइन और ऑफलाइन दुकानों में उपलब्ध कराया गया है, और इसके पुनः प्रकाशित होने के बाद यह किताब बुक स्टोर्स में भी उपलब्ध हो रही है।

विशेषज्ञों के अनुसार, इसकी कीमत उच्च है, लेकिन इस किताब की साहित्यिक मूल्य और इसके ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए यह उचित प्रतीत होती है। जो लोग सलमान रुश्दी की रचनाओं के प्रशंसक हैं, उनके लिए यह किताब एक अमूल्य धरोहर के समान है।

36 साल बाद ‘द सैटेनिक वर्सेज’ का भारत में बिकना एक साहित्यिक घटना के रूप में महत्व रखता है। यह किताब न केवल धार्मिक विचारधाराओं और समाज में चर्चा का विषय रही है, बल्कि यह भारतीय साहित्य में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के महत्व को भी सामने लाती है। हालांकि, इसके पुनः प्रकाशित होने पर विवाद उठना तय है, लेकिन यह कदम भारतीय समाज की बढ़ती साहित्यिक समझ और खुले विचारों की ओर एक कदम बढ़ा हुआ प्रतीत होता है।

इस किताब की पुनः उपलब्धता एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जिससे भारतीय समाज में संवाद और विचार-विमर्श को और अधिक प्रोत्साहन मिलेगा।