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जगदीप धनखड़ के खिलाफ बड़ी गोलबंदी, उपराष्ट्रपति पद से हटाने की मांग को लेकर विपक्ष लाया अविश्वास प्रस्ताव

विपक्षी दलों ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं। आरोप है कि उन्होंने संविधान का उल्लंघन किया और अपनी भूमिका में पक्षपाती रहे। इस प्रस्ताव से भारतीय राजनीति में एक नई हलचल मच गई है।

भारत में राजनीतिक हलकों में इन दिनों एक बड़ी हलचल मच गई है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ विपक्षी दलों ने अविश्वास प्रस्ताव लाकर देशभर में गहमागहमी का माहौल पैदा कर दिया है। विपक्ष का आरोप है कि उपराष्ट्रपति ने अपने संवैधानिक पद का दुरुपयोग किया है और वह अपनी भूमिका में निष्पक्ष नहीं रह सके हैं। ऐसे में, विपक्षी दलों ने उनसे उपराष्ट्रपति पद से हटाने की मांग को लेकर अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है।

विपक्ष का आरोप: संविधान के उल्लंघन का आरोप

विपक्षी दलों का कहना है कि जगदीप धनखड़ ने अपने कार्यकाल में संविधान की भावना का उल्लंघन किया है और अपने पद का इस्तेमाल भाजपा के पक्ष में किया है। उनका यह भी कहना है कि धनखड़ ने राज्यसभा के सभापति के रूप में कई बार विपक्षी नेताओं को निशाना बनाया और सरकार के खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबाने का प्रयास किया।

विपक्षी दलों का यह भी आरोप है कि उपराष्ट्रपति के रूप में धनखड़ ने अपनी भूमिका में निष्पक्षता और समता का पालन नहीं किया, जो कि भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है। उनके अनुसार, किसी भी संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को राजनीतिक दलों से ऊपर उठकर काम करना चाहिए, लेकिन धनखड़ के फैसलों और कार्यों से यह प्रतीत होता है कि उन्होंने हमेशा सत्ताधारी पार्टी की नीतियों का समर्थन किया है।

कौन-कौन से विपक्षी दल शामिल?

अविश्वास प्रस्ताव में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस (TMC), समाजवादी पार्टी (SP), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP), और अन्य प्रमुख विपक्षी दल शामिल हैं। इन दलों का दावा है कि जगदीप धनखड़ की कार्यशैली लोकतांत्रिक संस्थाओं के लिए खतरा बन सकती है और इससे संविधान का उल्लंघन हो रहा है।

क्या है अविश्वास प्रस्ताव?

अविश्वास प्रस्ताव एक संवैधानिक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से संसद के किसी सदस्य या पदाधिकारी के खिलाफ विश्वास का सवाल उठाया जा सकता है। यदि यह प्रस्ताव संसद में पारित हो जाता है, तो संबंधित व्यक्ति को अपने पद से हटा दिया जाता है। विपक्षी दलों का उद्देश्य यह है कि यह प्रस्ताव संसद में पारित हो और जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद से हटा दिया जाए।

केंद्रीय सरकार की प्रतिक्रिया

इस प्रस्ताव के बाद केंद्रीय सरकार और भाजपा ने विपक्षी दलों के आरोपों को सिरे से खारिज किया है। भाजपा नेताओं का कहना है कि उपराष्ट्रपति के रूप में जगदीप धनखड़ ने अपनी भूमिका पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता से निभाई है। सरकार ने यह भी कहा कि विपक्षी दल अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए ऐसे मुद्दों का सहारा ले रहे हैं।

कानूनी और संवैधानिक पक्ष

कानूनी जानकारों के अनुसार, यदि अविश्वास प्रस्ताव संसद में पारित हो जाता है, तो यह भारतीय राजनीति में एक ऐतिहासिक घटनाक्रम होगा। हालांकि, कई विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि यह प्रस्ताव सफल होना मुश्किल है क्योंकि सरकार के पास बहुमत है और धनखड़ की भूमिका को लेकर उनकी कोई बड़ी कानूनी गलती साबित नहीं हुई है।

राजनीतिक प्रभाव और भविष्य

इस प्रस्ताव का भारतीय राजनीति पर लंबा असर पड़ सकता है, क्योंकि इससे उपराष्ट्रपति के पद की गरिमा और संवैधानिक संस्थाओं के प्रति विश्वास पर सवाल उठ सकता है। इस मसले ने विपक्ष और सत्ताधारी दलों के बीच और गहरी खाई बना दी है, जिससे देश की राजनीतिक स्थिति में और भी तकरार बढ़ सकती है।

अंत में, यह देखा जाएगा कि संसद में होने वाली आगामी बहस इस प्रस्ताव को लेकर किस दिशा में आगे बढ़ेगी और क्या विपक्ष अपने आरोपों को साबित कर पाने में सक्षम होगा या नहीं।