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RSS करेगा दिल्ली में खेला! बढ़ गई केजरीवाल की टेंशन; चुपचाप इस काम को अंजाम दे रहा संघ

RSS ने दिल्ली में एक नए कदम की शुरुआत की है जो अरविंद केजरीवाल की सरकार के लिए चिंता का कारण बन सकता है। जानिए पूरी कहानी में क्या हो रहा है और इस समय संघ के चुपके से चल रहे कदम का क्या असर पड़ेगा।

दिल्ली में एक बार फिर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है, और इस बार RSS यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरफ से एक बड़ा कदम उठाया गया है जो अरविंद केजरीवाल की सरकार के लिए कई सवाल खड़े कर सकता है। इस कदम के चलते दिल्ली के राजनीतिक माहौल में एक नई टेंशन पैदा हो गई है। सवाल यह उठता है कि संघ ने यह कदम चुपचाप क्यों उठाया और इसका असर केजरीवाल सरकार पर कैसे पड़ने वाला है। जानिए इस खबर के बारे में विस्तार से।

RSS का नया कदम क्या है?

हाल ही में दिल्ली में संघ ने अपनी गतिविधियों को और तेज कर दिया है। संघ ने ध्यान से इस रणनीति को लागू किया है, जिससे किसी को इसका भान तक नहीं हो पाया है। इसके तहत संघ ने दिल्ली में अपनी पैठ को मजबूत करने के लिए कई सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शुरुआत की है। ये कार्यक्रम दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों में हो रहे हैं, जिसमें स्थानीय लोगों को जोड़ने और उन्हें संघ के विचारों से प्रभावित करने का प्रयास किया जा रहा है।

RSS के इस कदम का उद्देश्य दिल्ली में अपनी ताकत को बढ़ाना और खासकर उन इलाकों में अपने विचारों का प्रभाव बढ़ाना है जहां पर पहले से अरविंद केजरीवाल की पार्टी AAP का दबदबा था। संघ का मानना है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी के अलावा कोई और पार्टी नहीं है जो उनकी विचारधारा से मेल खाती हो, और इसलिए उनका यह कदम एक सुनियोजित प्रयास है।

केजरीवाल की टेंशन बढ़ी!

अरविंद केजरीवाल के लिए यह स्थिति नई नहीं है, क्योंकि वह पहले भी संघ की गतिविधियों से प्रभावित रहे हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने कई बार संघ के खिलाफ बयान दिए हैं। केजरीवाल जानते हैं कि संघ का असर काफी गहरा है, और दिल्ली में उनकी लगातार बढ़ती गतिविधियों से उन्हें अब चिंता होने लगी है। हालांकि, संघ ने इस बार अपनी रणनीति को बहुत चुपके से लागू किया है, जिससे केजरीवाल सरकार पर कोई सीधा दबाव नहीं बना, लेकिन अंदर से स्थिति काफी गंभीर होती जा रही है।

संघ की रणनीति पर क्यों है सवाल?

यह सवाल अब दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में गूंज रहा है कि संघ ने चुपचाप क्यों यह कदम उठाया। कई राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि संघ चाहता था कि उसकी गतिविधियां बिना किसी विवाद के दिल्ली में फैलें, ताकि उसका असर धीरे-धीरे और गहरे तक हो सके। दिल्ली में RSS के बढ़ते प्रभाव से दिल्ली सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं, क्योंकि संघ का राजनीतिक प्रभाव बहुत बड़ा है और इससे मुकाबला करना किसी भी सरकार के लिए आसान नहीं होता।

संघ के इस कदम के पीछे उनकी विचारधारा का प्रचार और सामाजिक प्रभाव बढ़ाने का उद्देश्य है। दिल्ली के युवा और सामाजिक वर्ग को संघ अपनी ओर आकर्षित करना चाहता है। संघ की यह योजना दिल्ली के शिक्षा और सामाजिक मुद्दों पर भी काम कर रही है, जिससे उनका प्रभाव सिर्फ राजनीति तक सीमित न रहे, बल्कि आम जनता के बीच भी हो।

दिल्ली में संघ की गतिविधियाँ:

दिल्ली में RSS के द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों में युवाओं के लिए प्रशिक्षण शिबिर, समाजिक एकता के कार्यक्रम और धार्मिक जागरूकता अभियान प्रमुख रूप से शामिल हैं। इन कार्यक्रमों के जरिए संघ दिल्ली के हर तबके को जोड़ने की कोशिश कर रहा है। खासकर दिल्ली के वो इलाकें जहां AAP का प्रभाव अधिक है, वहां संघ ने अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर दिया है, ताकि उनका संदेश ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे।

इस तरह के कार्यक्रमों में संघ के विचारों को फैलाने, समाज सुधार के उद्देश्य से चलाए गए कदमों को लेकर दिल्ली सरकार के मंत्रियों की चिंताएं भी बढ़ गई हैं। केजरीवाल का मानना है कि यदि संघ ने अपनी गतिविधियों को तेज कर दिया, तो आम आदमी पार्टी के लिए आगे की राजनीतिक लड़ाई और भी कठिन हो सकती है।

केजरीवाल की प्रतिक्रिया क्या है?

केजरीवाल ने संघ के बढ़ते प्रभाव पर अपने बयान दिए हैं, जिसमें उन्होंने संघ के कार्यक्रमों और गतिविधियों को राजनीतिक तौर पर खतरनाक बताया है। उनका कहना है कि संघ का उद्देश्य दिल्ली में सामाजिक ध्रुवीकरण करना और सांप्रदायिक वातावरण पैदा करना है। केजरीवाल का यह भी आरोप है कि संघ दिल्ली में एक खास वर्ग को अपने प्रभाव में लाकर सामाजिक संतुलन को बिगाड़ना चाहता है। वहीं दूसरी ओर, संघ की ओर से इन आरोपों को नकारा गया है और उनका कहना है कि उनका मकसद सिर्फ समाज सेवा और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना है।

दिल्ली में RSS के बढ़ते प्रभाव से अब यह सवाल उठ रहा है कि आने वाले दिनों में केजरीवाल सरकार की रणनीति क्या होगी। क्या वह संघ के प्रभाव को नकारने में सफल हो पाएंगे, या दिल्ली में भाजपा और संघ की बढ़ती ताकत के आगे उन्हें कुछ कदम पीछे हटने पड़ेंगे? यह देखना दिलचस्प होगा कि दिल्ली के इस राजनीतिक युद्ध में कौन सी पार्टी या संगठन विजय प्राप्त करता है।